अमेरिका और ईरान के बीच दुश्मनी का इतिहास जटिल, राजनीतिक, ऐतिहासिक और वैचारिक कारणों से जुड़ा हुआ है। यह नफ़रत अचानक नहीं आई, बल्कि दशकों में विकसित हुई है।
🔹 1953 की कूप (Coup) – शुरुआती तनाव की शुरुआत
अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक को हटाने के लिए एक गुप्त अभियान (Operation Ajax) चलाया।
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मोसद्दिक ने ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया था, जो पहले ब्रिटिश कंपनियों के नियंत्रण में था।
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इसके बाद अमेरिका ने शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी को सत्ता में बनाए रखा — जो एक तानाशाही शासक बन गए।
👉 ईरानी जनता में इसके खिलाफ गहरा रोष पनपा।
🔹 1979 की इस्लामिक क्रांति और बंधक संकट
यह एक जनआंदोलन था जिसमें ईरानी जनता ने देश के पश्चिम समर्थित राजा शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी की तानाशाही सरकार को हटाकर एक इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की।
🔍 क्रांति के पीछे के मुख्य कारण
1. तानाशाही शासन और दमन
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शाह ने राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए सावाक (SAVAK) नाम की खुफिया एजेंसी बनाई थी।
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लोगों को बोलने की आज़ादी, राजनीतिक भागीदारी और मानवाधिकार नहीं थे।
2. पश्चिमीकरण और इस्लामी संस्कृति का दमन
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शाह ने ईरान को पश्चिमी सभ्यता के अनुसार आधुनिक बनाने की कोशिश की (Westernization) — जैसे महिलाओं के हिजाब पर रोक, शराब और पश्चिमी संगीत को बढ़ावा।
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इससे धार्मिक वर्ग और परंपरावादियों में भारी आक्रोश पैदा हुआ।
3. अमेरिका और ब्रिटेन का हस्तक्षेप
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लोग मानते थे कि शाह, अमेरिका की कठपुतली है — खासकर 1953 के तख़्तापलट के बाद।
4. आर्थिक असमानता और भ्रष्टाचार
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तेल से समृद्धि तो आई, पर आम जनता को फायदा नहीं मिला।
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अमीर और गरीब के बीच गहरी खाई बन गई।
👤 मुख्य नेता – अयातुल्ला रुहोल्लाह खोमैनी
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एक वरिष्ठ शिया धर्मगुरु थे जो शाह की नीतियों के मुखर आलोचक थे।
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उन्हें 1964 में देश से निकाल दिया गया, पर उन्होंने पेरिस और इराक से अपने विचारों को फैलाया।
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वे “इस्लामी गणराज्य” के विचार के प्रमुख वास्तुकार बने।
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शाह के शासन के खिलाफ 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई, जिसके बाद अयातुल्ला खोमैनी के नेतृत्व में ईरान एक इस्लामिक गणराज्य बन गया।
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उसी साल, तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ और 52 अमेरिकियों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया।
👉 इस घटना ने अमेरिका में ईरान के प्रति गहरे गुस्से और घृणा को जन्म दिया।
🔹 विचारधारा में टकराव (Ideological Conflict)
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अमेरिका एक धर्मनिरपेक्ष, पूंजीवादी लोकतंत्र है जबकि ईरान एक शिया इस्लामिक गणराज्य है जो “पश्चिमी हस्तक्षेप” के खिलाफ खड़ा रहता है।
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ईरान “मृत्यु अमेरिका को!” जैसे नारों के लिए भी जाना जाता है।
🔹 ईरान का परमाणु कार्यक्रम
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अमेरिका को डर है कि ईरान परमाणु हथियार बना सकता है, जो मध्य पूर्व की सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
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इसके चलते अमेरिका ने ईरान पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईरान को अलग-थलग करने की कोशिश की।
🔹 मध्य पूर्व में प्रभाव और परोक्ष युद्ध (Proxy Conflicts)
ईरान ऐसे कई समूहों को समर्थन देता है जिन्हें अमेरिका आतंकी संगठन मानता है:
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हिज़्बुल्लाह (लेबनान)
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हूथी विद्रोही (यमन)
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शिया मिलिशिया (इराक)
👉 ये संगठन अक्सर अमेरिका के सहयोगी इज़राइल और सऊदी अरब के खिलाफ होते हैं।
🔹 2018: ट्रंप द्वारा परमाणु समझौते से बाहर आना
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2015 में ओबामा प्रशासन ने ईरान के साथ परमाणु समझौता (JCPOA) किया था, जिससे थोड़ी शांति आई।
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लेकिन 2018 में ट्रंप ने उस समझौते को तोड़ दिया और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए।
👉 इसके बाद तनाव और गहराया।
🔹 जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या (2020)
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अमेरिका ने ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी को ड्रोन हमले में मार गिराया।
👉 ईरान ने इसे “युद्ध की कार्यवाही” माना और इसका बदला लेने की कसम खाई।
📌 संक्षेप में:
अमेरिका और ईरान की नफ़रत केवल एक घटना की वजह से नहीं, बल्कि सालों की राजनीति, हस्तक्षेप, विचारधाराओं के टकराव और क्षेत्रीय संघर्षों से उपजी है।