
पंचांग के अनुसार, हरियाली तीज का पर्व 27 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा।यह त्योहार हर साल सावन के महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस खास तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।साथ ही सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत किया जाता है।धार्मिक मान्यता है कि व्रत के दौरान कथा का पाठ न करने से साधक शुभ फल की प्राप्ति से वंचित रहता है। इसलिए सच्चे मन से कथा (Hariyali Teej Ki Katha) का पाठ करना चाहिए।
हरियाली तीज व्रत कथा ( Hariyali Teej Vrat Katha )
भविष्य पुराण के अनुसार तीज यानी तृतीया तिथि का व्रत और पूजन देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। पुराणों के अनुसार चंद्रमा की 27 पत्नी हैं,इनमें चंद्रमा रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते हैं।पुराण के अनुसार रोहिणी ने तृतीया तिथि का व्रत किया था जिससे रोहिणी के प्रति चंद्रमा का प्रेम सबसे अधिक है।सावन के मास में जो कुंवारी कन्याएं और सुहागन स्त्री तृतीया तिथि को हरियाली तीज की कथा सुनती है और देवी पार्वती की भगवान शिव के साथ पूजा करती है उन्हें मनोनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होगी और सुहाग की उम्र भी लंबी होती है। इस संदर्भ में पुराण में कथा है कि देवी पार्वती और भगवान शिव ने हरियाली तीज को किस प्रकार कन्याओं के लिए विवाह और वैवाहिक जीवन में प्रेम और आनंद पाने का व्रत बनाया।देवी पार्वती अपने पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। उस समय दक्ष प्रजापति के विरोध और इच्छा विरुद्ध जाकर देवी सती ने महादेव से विवाह किया था। दक्ष प्रजापति भगवान विष्णु से देवी सती का विवाह करवाना चाहते थे,लेकिन देवी सती भगवान शिव को अपना पति मान चुकी थीं। अंत में पुत्री की खातिर दक्ष प्रजापति को भगवान शिव के साथ सती का विवाह करवाना पड़ा,लेकिन दक्ष प्रजापति फिर भी शिव-द्रोही बने रहे।
एक समय दक्ष प्रजापति ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवी देवताओं, नाग, किन्नर, गंधर्व, ऋषियों को आमंत्रित किया। त्रिलोक में दक्ष प्रजापति के यज्ञ की चर्चा होने लगी। बात देवी सती के कानों में भी आई और वह दुखी हुई की उनके पिता ने महादेव को उन्हें यज्ञ में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया। इस बात से देवी सती को बहुत दुख हुआ और वह फिर भी बिना बुलाए पिता के यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। महादेव में देवी सती से कहा कि, हे देवी बिना बुलाए पिता के घर जाने से भी मान सम्मान की हानि होती है इसलिए मेरी बात मानो और तुम ना जाओ।
लेकिन देवी सती अपनी जिद्द में शिव की बात को मानने को तैयार न हुई और शिव से कहने लगीं कि आप भले न जाएं लेकिन मैं अपने पिता के यज्ञ में जरूर जाऊंगी और वह शिव की आज्ञा बिना ही मायके चली आईं। दक्ष प्रजापति ने जब देवी सती को बिना बुलाए आते देखा तो देवी सती और महादेव का बड़ा अपमान किया। उस समय देवी सती को महादेव की बातों को स्मरण हुआ और अपनी भूल पर वह प्रायश्चित करने लगीं। सती ने कहा कि महादेव के मना करने पर भी मैं यहां आई और मेरे कारण मेरे पति का अपमान हुआ है।अतः अब किस मुंह को लेकर शिव के समक्ष जाऊंगी। दुःखी और क्रोधित हुई सती उसी समय पिता के यज्ञ कुंड में शिव का ध्यान करते हुए कूद गईं और सती हो गईं।
देवी सती के अग्नि कुंड में देह त्याग की सूचना मिलते ही भगवान शिव अत्यंत क्रोधित होकर वीरभद्र को प्रकट किया जिसने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इसके बाद शिवजी घोर साधना में लीन हो गए। इधर देवी सती को भगवान शिव की आज्ञा का उल्लंघन करने का दंड भी मिला और उनका कई जन्म होता रहा। इस तरह देवी सती के 108 जन्म हुए। 107 जन्मों तक वह भगवान शिव को पुनः पति रूप में पाने के लिए तपस्या करती रहीं। 108वें जन्म में देवी सती का हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म हुआ।
इस जन्म में देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन में मृतिका से शिवलिंग का निर्माण करके भक्ति भाव से शिवजी की पूजन किया और तपस्या में लीन हो गईं। देवी पार्वती की तपस्या से अंत में प्रसन्न होकर हरियाली तीज पर भगवान शिव प्रकट हुए और देवी पार्वती को वरदान दिया कि तुम मेरी अर्धांगिनी बनोगी। इस तरह देवी हरियाली तीज के दिन देवी पार्वती को भगवान शिव से मन अनुकूल वर प्राप्ति का वरदान मिला। इसके बाद भगवान शिव ने देवी पार्वती के आग्रह पर कहा कि जो भी कुंवारी कन्या हरियाली तीज का व्रत करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करेगी उसे कामना के अनुसार सुयोग्य पति की प्राप्ति होगी और जो सुहागन महिला हरियाली तीज का व्रत करेगी उनका वैवाहिक जीवन प्रेम और सुख से भरा रहेगा।
🪔🪔तीज पूजा विधि और सामग्री🪔🪔
- पूजा से पहले, महिलाओं को स्नान करके नए पारंपरिक वस्त्र पहनने चाहिए।घर पर हरतालिका पूजा करने के लिए, सबसे पहले पूजा मंडप को गंगाजल से साफ़ करें।
- फिर, प्राकृतिक मिट्टी या रेत का उपयोग करके तीन मूर्तियाँ बनाएं – एक माता पार्वती की,एक भगवान शिव की और एक भगवान गणेश की।
- मंडप के कपड़े की जगह एक नया लाल या सफेद कपड़ा बिछाएँ।देवताओं को एक थाली में रखकर मंडप पर सावधानी से स्थापित करें।
- इसके बाद, देवताओं के सामने एक वृत्त में दो मुट्ठी कच्चे चावल समान रूप से फैलाएं,तथा वृत्त के केंद्र से उसके आठ कोनों तक आठ रेखाएं खींचें।
- पूजा के लिए कलश में निम्नलिखित वस्तुएं डालें: अक्षत, पैसा, जल और सुपारी।
- एक बार जब ये सभी सामग्री डाल दी जाए, तो कलश के ऊपर नारियल रखें, उस पर आम के पत्ते सजाएं और देवताओं के सामने चावल के छल्लों पर कलश स्थापित करें।
- देवताओं के दाहिनी ओर तेल या घी का दीपक जलाकर रखें।
- फल, नारियल, सुपारी, पान और दक्षिणा के साथ जप-पुष्प और दूर्वा भेंट कर भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करें।
- पंचपात्र जल की कुछ बूंदों से अपने हाथ धोने के बाद,पूजा शुरू करने के लिए भगवान शिव और पार्वती के चरणों में जल अर्पित करें।
- भगवान शिव को निम्नलिखित वस्तुएं अर्पित करें: एक सफेद कपड़ा, चंदन का लेप, पवित्र धागा, तथा फूल, फल, विल्व पत्र, तथा सफेद मुकुट के फूल इसी क्रम में।
- देवी पार्वती को गुलाब के फूल और सुहाग सामग्री के साथ-साथ लाल दुपट्टा, सिंदूर, आलता, चूड़ियाँ, काजल, हल्दी और मेहंदी जैसी अन्य वस्तुएं अर्पित करें।
- सबसे पहले धूपबत्ती जलाएं और व्रत कथा पढ़ें।
- पूजा का अंतिम अनुष्ठान हरतालिका तीज व्रत कथा का पाठ करना और आरती करना है।
हरियाली तीज का क्या महत्व है?
हरियाली तीज का त्योहार शिव और पार्वती के पुनर्मिलन की याद में भी मनाया जाता है, वह दिन जब शिव ने पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।पार्वती ने कई वर्षों तक उपवास और कठोर तपस्या की और अपने 108वें जन्म में शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। पार्वती को तीज माता के नाम से भी जाना जाता है।